अभी बीते हुए 10 मई, 2009 को हमारे कॉलेज में Mothers Day मनाया गया। हमने भी भाग लिया। हमलोगों ने इस शुभ अवसर पर एक नाटक भी किया जिसका शीर्षक था - कुली। नाटक दिल को छूने वाला था। हमारे सभी मित्रों ने इस प्रोग्राम को सफल बनाने में अपना बहुमूल्य समय दिया।
माँ..............
जब ईश्वर स्वयं धरातल पर न आ सका तो उसने माँ को भेजा। 'माँ' इस धरा की सबसे अनमोल उपहार हैं। माँ हमें जीवन देती हैं, हमें अपने पैरों पर खड़ा होना, अपने हाथों से खाना - खाना, सिखाती है। अगर इस जहाँ में कोई निश्छल प्यार करने वाला हैं तो वो माँ ही है। बचपन से लेकर जवानी तक जब भी हमे कोई तकलीफ होती है तो मुहँ से बस इक ही आवाज निकलती हैं ओह्ह्ह्ह माँ..... । माँ कितनी भी गहरी नींद से क्यों न सो रही हो अगर उसके कानो में उसके बेटे की बस इक आवाज "माँ तुम कहाँ हो" पहुचती है तो वो तुंरत जग जाती हैं, थोडी भी आलस नही करती
मेरी माँ हमेशा मेरे लिए किसी त्यौहार पर कुछ खास बनाया करती थी और मै हमेशा उसमे कुछ न कुछ कमीनिकला देता था। माँ का हँसता हुआ चेहरा मायूस हो जाता था और मैं ये बात उस समय समझ नही पता था। आज जब माँ के उस हाथ के खाने को तरसता हूँ तो आँखों में आंसू आ जाते हैं।
ऐसे मौके कितनी बार आए होंगे जब मैं माँ को बोल दिया करता था की "मम्मी आपका दिमाग ख़राब है, मम्मी प्लीज जब आपको नही पता तो चुप रहियें"। कभी - कभी तो माँ बोलती की हाँ अब हमने तुम्हे पढ़ा-लिखा कर बड़ा कर दिया तो हमें कहाँ से पता चलेगा, तो कभी चुप रह जाती थी। लेकिन आज जब वो सारी बाते सोचता हूँ तो ख़ुद पर गुस्सा आता है।
जो माँ मेरी कितनी गलतियों को छुपा जाती थी, कितनी बार तो मेरे चलते पापा से डाट भी सुनती थी, जो माँ मेरे पास होने पर मन्दिर में भोग लगाती थी, उस माँ को मैंने कितनी चोट पहुचाई।
मुझे आज भी याद है जब मै भुबनेश्वर पढने आ रहा था मेरी माँ दरवाजे से मुझे देख रही थी आखों में आसूं थे फिरभी हँस रही थी लेकिन मैंने माँ के अन्दर इक माँ को रोते हुए देखा था लेकिन क्या करता जिंदगी में कुछ चीजे ऐसी होती है जिस पर अपना कोई अधिकार नही होता।
अब तो ख़ुद को ही दिलासा दिलाता हूँ की बस इक बार मौका मिले तो माँ को इतना प्यार करू की माँ हर जन्म के लिए बस मेरी सिर्फ मेरी माँ हो जाए।
मैंने कुछ पंक्तिया भी अपनी माँ के लिखी थी जो आपके साथ भी शेयर कर रहा हूँ..................
माँ......
मै तुझे हमेशा याद करता हूँ,
जब याद तुम्हारी आती है आखों में आंसू आ जाते है,
तो कभी तन्हाई के इस आलम में दिल को सुकून दे जाते हैं।
माँ......
वो तेरा बचपन का प्यार,
शरारत करने पर डंडे की मार,
गुस्से में मेरा खाने से रूठना और
तेरा दादी को भेज कर मुझे मनाना
उन पलों को आज भी याद करता हूँ,
ओ माँ मैं तुझे हमेशा याद करता हूँ।माँ......
जब तू कुछ खास बनाती थी मेरे लिए
मै हमेशा उसमे कुछ कमी निकाला करता था,
तेरे उस उदास चहरे की अहमियत
मैं नही समझ पता था
आज जब तरसता हूँ उस खाने के लिए,
तो फुट-फुट कर रोता हूँ,
तेरे उन हाथों से खाने को मचलता हूँ
माँ मैं तुझे बहुत याद करता हूँ।माँ........
आज जब कभी बहुत खुश होता हूँ,
तो तेरी तस्वीर के आगे हँसता हूँ
जब रोने का जी करता है तो
तेरी तस्वीर से छुप कर रो लेता हूँ
तुझे मेरी ये दशा पता ना चले इसलिए
हर रोज फ़ोन से बातें किया करता हूँ,
पर अन्दर ही अन्दर मैं रोया करता हूँ,
सचमुच इक तू ही माँ जिसे मैं हमेशा याद किया करता हूँ।
Shashi Kant Singh
School of Rural Management
KiiT University
Bhubaneswar
माँ..............
जब ईश्वर स्वयं धरातल पर न आ सका तो उसने माँ को भेजा। 'माँ' इस धरा की सबसे अनमोल उपहार हैं। माँ हमें जीवन देती हैं, हमें अपने पैरों पर खड़ा होना, अपने हाथों से खाना - खाना, सिखाती है। अगर इस जहाँ में कोई निश्छल प्यार करने वाला हैं तो वो माँ ही है। बचपन से लेकर जवानी तक जब भी हमे कोई तकलीफ होती है तो मुहँ से बस इक ही आवाज निकलती हैं ओह्ह्ह्ह माँ..... । माँ कितनी भी गहरी नींद से क्यों न सो रही हो अगर उसके कानो में उसके बेटे की बस इक आवाज "माँ तुम कहाँ हो" पहुचती है तो वो तुंरत जग जाती हैं, थोडी भी आलस नही करती
मेरी माँ हमेशा मेरे लिए किसी त्यौहार पर कुछ खास बनाया करती थी और मै हमेशा उसमे कुछ न कुछ कमीनिकला देता था। माँ का हँसता हुआ चेहरा मायूस हो जाता था और मैं ये बात उस समय समझ नही पता था। आज जब माँ के उस हाथ के खाने को तरसता हूँ तो आँखों में आंसू आ जाते हैं।
ऐसे मौके कितनी बार आए होंगे जब मैं माँ को बोल दिया करता था की "मम्मी आपका दिमाग ख़राब है, मम्मी प्लीज जब आपको नही पता तो चुप रहियें"। कभी - कभी तो माँ बोलती की हाँ अब हमने तुम्हे पढ़ा-लिखा कर बड़ा कर दिया तो हमें कहाँ से पता चलेगा, तो कभी चुप रह जाती थी। लेकिन आज जब वो सारी बाते सोचता हूँ तो ख़ुद पर गुस्सा आता है।
जो माँ मेरी कितनी गलतियों को छुपा जाती थी, कितनी बार तो मेरे चलते पापा से डाट भी सुनती थी, जो माँ मेरे पास होने पर मन्दिर में भोग लगाती थी, उस माँ को मैंने कितनी चोट पहुचाई।
मुझे आज भी याद है जब मै भुबनेश्वर पढने आ रहा था मेरी माँ दरवाजे से मुझे देख रही थी आखों में आसूं थे फिरभी हँस रही थी लेकिन मैंने माँ के अन्दर इक माँ को रोते हुए देखा था लेकिन क्या करता जिंदगी में कुछ चीजे ऐसी होती है जिस पर अपना कोई अधिकार नही होता।
अब तो ख़ुद को ही दिलासा दिलाता हूँ की बस इक बार मौका मिले तो माँ को इतना प्यार करू की माँ हर जन्म के लिए बस मेरी सिर्फ मेरी माँ हो जाए।
मैंने कुछ पंक्तिया भी अपनी माँ के लिखी थी जो आपके साथ भी शेयर कर रहा हूँ..................
माँ......
मै तुझे हमेशा याद करता हूँ,
जब याद तुम्हारी आती है आखों में आंसू आ जाते है,
तो कभी तन्हाई के इस आलम में दिल को सुकून दे जाते हैं।
माँ......
वो तेरा बचपन का प्यार,
शरारत करने पर डंडे की मार,
गुस्से में मेरा खाने से रूठना और
तेरा दादी को भेज कर मुझे मनाना
उन पलों को आज भी याद करता हूँ,
ओ माँ मैं तुझे हमेशा याद करता हूँ।माँ......
जब तू कुछ खास बनाती थी मेरे लिए
मै हमेशा उसमे कुछ कमी निकाला करता था,
तेरे उस उदास चहरे की अहमियत
मैं नही समझ पता था
आज जब तरसता हूँ उस खाने के लिए,
तो फुट-फुट कर रोता हूँ,
तेरे उन हाथों से खाने को मचलता हूँ
माँ मैं तुझे बहुत याद करता हूँ।माँ........
आज जब कभी बहुत खुश होता हूँ,
तो तेरी तस्वीर के आगे हँसता हूँ
जब रोने का जी करता है तो
तेरी तस्वीर से छुप कर रो लेता हूँ
तुझे मेरी ये दशा पता ना चले इसलिए
हर रोज फ़ोन से बातें किया करता हूँ,
पर अन्दर ही अन्दर मैं रोया करता हूँ,
सचमुच इक तू ही माँ जिसे मैं हमेशा याद किया करता हूँ।
Shashi Kant Singh
School of Rural Management
KiiT University
Bhubaneswar
behtarin abhivyakti hai.bahut achchha likha hai.
ReplyDeleteNavnit Nirav
kya khahu app ne to rulaa deya maa ki yaad dila di app ne,bhut hi ache abhiivyakti hai jo sabodo me bayan karna muskil hai. every word of this poem will touch the heart of reader.
ReplyDeletemaa......ye pad ke aisa lag raha hai jaise ki aapne me mann ki bat kah di, dil me ye bate hamesha rahti hai, kabhi-kabhi to aisa lagta hai ki abhi ek pal me ud ke chala jau maa.... ke paas
ReplyDeleteaapke en panktiyo ko likhne ke liye bahut sarahana mere taraph se
u made me emotional.........
ReplyDeletewowwwwwwwwww gr888
aap ki maa yeh pad kar apne apko garv anubhab karegi ki aap uske olad ho....
god bless u n be happy alway .....
सुन्दर भावः,
ReplyDeleteआपने अपनी माँ के लिए सुन्दर कविता लिखी है , अच्छे चित्र का इस्तेमाल किया है .
आपको पढ़कर उर्जा मिलती है , यूँ ही लिखते रहिये
मयूर
अपनी अपनी डगर
waoo u r a g8 writer mast hai....
ReplyDeletevery heart touching n emotional. U had written ur own experince r8.... sachi me kya likhte ho..maza agaya
bahut achi bhav darshati kavita...
ReplyDeleteit was really a emotional experience reading it.
ReplyDeletei read most of the stuff here but this poem trully touched me.
It seriously evokes u internally u if u love ur mother..................