Saturday, September 2, 2017

ये कहाँ आ गए हम......

बहुत दिन बाद अपने गांव पर था,
सामने सभी जाने पहचाने चेहरे थे...
मंदिर के पास आज भी,
वही छोटा सा मेरा घर भी था,

वो घर जहाँ कभी बहुत कुछ ना होकर भी सबकुछ था,
हर सुख में, दुःख में
अपनों का साथ था,
जहाँ बारिश की बुँदे
ठीक बिस्तर पर टपकते हुए हमें जगाती थी.
तेज हवाओं के साथ मिल कर हमें भिगोती थी
हमसब मिलकर उस आशियाने को बसाते थे,
बारिश के जख्मों को हँस - हँस  कर भुलाते थे.

समय बदला, हमारी जरूरते बदलने लगी,
ना जाने कब, वो आशियाना
हमारी प्रतिष्ठा को खटकने लगी.

हम दौड़ पड़े
गावं से दूर एक शहर की तरफ
एक नये आशियाने से,
अपनी प्रतिष्ठा को सवारने की तरफ,
अब ना ही हमें,
प्रतिष्ठा के खटकने का डर था,
ना ही बारिश के जगाने का भय था.

ये बारिश, जो हमें कभी बहुत करीब से जगाती थी,
हाथ से हाथ मिलाती थी,
आज बस खिड़की से ही लौट जाती है
शायद कुछ गहरा अपनापन था हमसे
जो आज भी कुछ बूंदों को हमारी खिड़की पर छोड़ जाती है.

दुर हम बारिश से क्या हुए,
सारे अपने पीछे छुट गये,
आशियाँ बसाने की चाह में,
हम अपनों को भुल गये.

आज हर तरफ एक अजीब सा सन्नाटा है,
भीड़ में भी हर कोई खामोश और अकेला है,
हमारा नया आशियाना भी खुबसूरत सा है,
मगर दिल के करीब आज भी,
वही टुटा फुटा आशियाना है.

जहाँ कुछ भी नहीं था आपसी प्यार के सिवा,
आज सबकुछ है आपसी प्यार के बिना,


Shashi
(जिन्दगी के कुछ अनुभव साझा करने की कोशिश.....)

तेरा एहसास...

साथ हो अगर तो साथ हो नहीं भी हो तो जी लेंगे हम सिलवटें आएँगी मगर कपडे की तरह संवर जायेंगे हम रिश्ता गहरा है , दुर होने से ...