Wednesday, January 27, 2010

इक चेहरा.....

आजकल इक चेहरा
मेरे सपनों में आता हैं,
हर पल, हर घड़ी
मेरे साथ होने का एहसास दिलाता हैं,
इसे प्यार कहूँ या पागलपन
मुझें तो कुछ समझ नहीं आता हैं,

आजकल मैं अकेले-अकेले ही हँसता रहता हूँ,
लोगों को तो इक पागल-सा लगता हूँ,
हद तो तब हो जाती हैं,
जब जाना होता कही और है,
मैं कही और पहुँच जाता हूँ,
अब क्या कहूँ,
उसके चेहरें की लालिमा,
मुझे हमेशा याद आता हैं,
जो चेहरा....आजकल
मेरे सपने में आता है।

अब तो उन सपनों में खो जाना चाहता हूँ,
उम्रभर उसी का साथ पाना चाहता हूँ,
तोड़कर सारी दुनिया की रश्मों को
उसे अपनी सांसों में बसना चाहता हूँ,
मगर...
उन सपनो की हकीकत से अनजान हूँ,
उस प्यारे से आँखों के सामने
खुद ही गुमनाम हूँ,
जब - भी सोचता हूँ अपनी किस्मत पर
खुद पर ही हंसीं आता है,
पर क्या करूं....
वो चेहरा ही मेरे सपनो में आता है
जो मेरे इस दिल को बहुत ही भाता है।

Shashi Kant Singh
School of Rural Management
KiiT University, Bhubaneswar

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