Monday, September 2, 2013

अगर मै सोचु….!!

अगर मै सोचु…
ये २१वी  सदी का भारत मुझे अच्छा लगता है,
इसके जीने का अंदाज मुझे अच्छा लगता है,
अनेकता में एकता की परिभाषा सिखाते रखवालों को,
हर रोज एक नयी सीमाये बनाते देख अच्छा लगता है,
ये मेरा ही देश है, जानते हुए भी 
यहाँ Chinese में "नि हाउ" और Japenese में "सायोनारा" सुन अच्छा लगता है. 

सूखते पत्तों की टोली हो या हरे पत्तों का हुजूम,
सबके अन्दर पनपती मतलबी इंसानियत अच्छी लगती है,
चाय की झुग्गी से लेकर Facebook के स्टेटस तक,
"मनमोहक" चुप्पी पर Twitter में होती बहस अच्छी लगती है,
देश-भक्ति के नाम पर बस 
हमें मल्टीप्लेक्स में राष्ट्रगान पर खड़ा होना रास आता है.
कुछ भी कहो जैसा भी हो ……. 
मुझे इस देश का वासी होने पर गर्व आता है. 

कहने को तो हम एक आज भी है,
मगर भाषा और बोली से पहचाने जाना अच्छा लगता है,
भगवान, खुदा, मसीहा मिले ना मिले,
उनके नाम पर उजड़ते बासिंदों को देख अच्छा लगता है,
अगर मै कहु तो मेरे इस देश में,
इन्सान के अन्दर दफन होती इंसानियत देख अच्छा लगता है.

लगा कर फक्र से स्याही अपने अंगुली पर जिन्हें 
पहनाया ताज अपनी हिफाजत का,
उनके खुद की सुरक्षा देख अच्छा लगता है,
समय - समय पर उन ऊँघते चेहरों को,
संसद में मेज को पीटते देख अच्छा लगता है. 
दो वक्त कि रोटी में जुझते इन्सान की,
दिन-ब-दिन भीखमंगी होती इंसानियत अच्छा लगता है,
सचमुच ये गाँधी जी के सपनों  वाला देश है,
जहाँ जीना अभी भी अच्छा लगता है।  

सब जानते है कि आखिरी मंजिल श्मशान या कब्रिस्तान ही है,
फिर भी मेज तले हाथ फैलाना अच्छा लगता है,
अगर मै सोचु…. 
रघुपति राघव राजा राम वाले मेरे इस देश में,
जीने का भी मन करता है और यही मरने का भी मन करता है।I

Shashi Kant Singh
Guwahati, Assam 

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