हा मैं एक आम आदमी हुँ
आजादी के इन 60 सालो बाद भी
इतनी तो समझ बची है मेरे मे
जो एहसास कराये
कि मै एक आम आदमी था
और आज भी हूँ।
मुझे पहचाना आपने
मै तब भी वही था जब अपना देश गुलाम था
सब के साथ मिलों पैदल चला
लाठियाँ खायी, गोलियाँ खायी,
और आपके साथ साथ उस दिन का गवाह बना
ना अपनी पहचान पाने के लिये आरजु करी
ना ही पुरस्कार पाने कि लालसा दिखाई
क्योकि मुझे पता था कि
मै एक आम आदमी हुँ।
मुझे कही खोजने कि जरुरत नहीं है
मै तो हमेशा आँखों के सामने हुँ
कभी राशन कि दुकान पर कतार में
कभी रेलवे स्टेशन पर कतार में
कभी धक्के खाता बसो मे
तो कभी बिमारी से लड़ता हुआ लाचार पड़ा अस्पताल मे
क्या करू मै जो आम आदमी हुँ
ये हमारी मजबुरी नही हमारी तकदीर है
हमारे माथे कि लकीर है
हाथों की लकीरें तो अब बची नहीं
सब पसीने बेचने मे मिटती रही
हमारे घरों में जलने वाले चूल्हो मे तेल
उनकी तिजोरियो से रिस - रिस कर टपकती रही
लाठिया तब भी खाता था
लाठिया आज भी खाता हूँ
गालियाँ तब भी सुनता था
गालियाँ आज भी सुनता हुँ
गोलियाँ तब भी मिलती थी
गोलियाँ आज भी मिलती है
फर्क बस इतना है कि
तब मै एक भारतीय था
आज मै बस एक आम आदमी हुँ।
आजादी के इन 60 सालो बाद भी
इतनी तो समझ बची है मेरे मे
जो एहसास कराये
कि मै एक आम आदमी था
और आज भी हूँ।
मुझे पहचाना आपने
मै तब भी वही था जब अपना देश गुलाम था
सब के साथ मिलों पैदल चला
लाठियाँ खायी, गोलियाँ खायी,
और आपके साथ साथ उस दिन का गवाह बना
ना अपनी पहचान पाने के लिये आरजु करी
ना ही पुरस्कार पाने कि लालसा दिखाई
क्योकि मुझे पता था कि
मै एक आम आदमी हुँ।
मुझे कही खोजने कि जरुरत नहीं है
मै तो हमेशा आँखों के सामने हुँ
कभी राशन कि दुकान पर कतार में
कभी रेलवे स्टेशन पर कतार में
कभी धक्के खाता बसो मे
तो कभी बिमारी से लड़ता हुआ लाचार पड़ा अस्पताल मे
क्या करू मै जो आम आदमी हुँ
ये हमारी मजबुरी नही हमारी तकदीर है
हमारे माथे कि लकीर है
हाथों की लकीरें तो अब बची नहीं
सब पसीने बेचने मे मिटती रही
हमारे घरों में जलने वाले चूल्हो मे तेल
उनकी तिजोरियो से रिस - रिस कर टपकती रही
लाठिया तब भी खाता था
लाठिया आज भी खाता हूँ
गालियाँ तब भी सुनता था
गालियाँ आज भी सुनता हुँ
गोलियाँ तब भी मिलती थी
गोलियाँ आज भी मिलती है
फर्क बस इतना है कि
तब मै एक भारतीय था
आज मै बस एक आम आदमी हुँ।