हम ये बात अच्छी तरह जानते है की भारत एक लोकतांत्रीक , प्रजातान्त्रीक, देश है। ये ऐसा देश है जहाँ प्रतीनीधी जनता के द्वारा चुने जाते है। ये वो देश है जहाँ जनता को अधीकार दीया गया है की वो अपना प्रतीनीधी ख़ुद से चुने।
आज देश को आजाद हुएं 60 साल से भी ऊपर हो गये। आज हम उस जगह पर खड़े है जहाँ दुनीया हमारी लोहा मानने को मजबूर है। आज वीकसीत देशो को हमारी जरुरत का एहसास होने लगा है। लेकीन सवाल ये उठता है की क्या वास्तव में हम वीकास कर रहे है? इस पर गहराई से वीचार करना होगा नही तो ऐसा कहना मीथ्या ना होगा की हम केवल और केवल पशचीमी सभ्यता को अपनाकर वीकास का दीखावा और ढोंग कर रहे है।
आजादी के 60 सालों के बाद भी हम अपने समाज को बदलने में असमर्थ है। आज हर नागरीक बिजली, पानी की बात करता है लेकीन वही नागरीक जब कोई सड़क की लाइट दीन में जलता देखता है तो उसे बंद करना जरुरी नही समझता , वही नागरीक जब सार्वजनीक स्थल पर कोई नल खुला देखता है तो उसे बंद करना जरुरी नही समझता।
आज अगर कोई गलती से भी खुले मन से समाज की सेवा करने चलता है तो लोग उसे पागल कहते है। अगर ये सच है तो हमारे सारे करान्तीकारी पागल थे? जो हस्ते - हस्ते फाँसी के फंदे को चूम कर, अंग्रेजो के डंडे खा कर, जेल में रातें गुजार कर हमें आजादी दीलाई, क्या वो सब पागल थे - अगर हाँ तो आज हमारे देश को ऐसे ही पागलों की जरुरत हैं।
हमें ऐसे खादीधारीयों की जरुरत नही है जो वोट की राजनीती करते हैं, जो वोट के लीये कंप्यूटर शिक्षा को बेकार बताते है। हमें ऐसे नेताओ की जरुरत नही है जो अंग्रेजी शिक्षा को बेकार बताते है। आज कोई अपने गावँ तक रेलवे लाइन बीछाता है, तो कोई आपने गावँ में इन्जीन्यरींग कोलेज खोलवाता है, कोई तो वोट के लीये Rs. 2/- per kg आनाज देने का वादा करता है, कोई बीजली मुफ्त में बाटता है, तो कोई बैंक का लोन माफ करता है। आज जीतना हर साल चुनाव में जीतना खर्च होता है अगर उसका 1/3 भाग भी वीकास में सच में खर्च कीया जाय तो सच में अपना देश अब तक वीकासशील से वीकसीत हो गया होता।
आज चुनाव के समय हर पार्टी प्रचार में कलाकारों की सहायता क्यो लेता है आज कोई अपने कामो पर वोट क्यों नही मांगता।समस्या ये है की हम इनकी बातों में आ जाते है और इन्हे आधिकार दे देते है।गलती तो हम करते है और फीर दोष उनको देते है। उन्हें तो ये बात अच्छे से पता है की हम मुर्ख है लेकीन अब हमें जागना होगा नही तो हम ऐसे ही मुर्ख बनाये जायेंगे। हमें ये साबीत करना होगा की हम मुर्ख नही है हम भी जाती, धर्म, से ऊपर उठ कर सोच सकते है, हमें ये साबीत करना होगा की लोकतंत्र का मतलब "जनता को, जनता के द्वारा, जनता के लीये चुनी गई सरकार ही है न की नेताओं को, जनता के द्वारा दीया गया अधीकार है "
हमें ये सोचना होगा की ...............आज देश को आजाद हुएं 60 साल से भी ऊपर हो गये। आज हम उस जगह पर खड़े है जहाँ दुनीया हमारी लोहा मानने को मजबूर है। आज वीकसीत देशो को हमारी जरुरत का एहसास होने लगा है। लेकीन सवाल ये उठता है की क्या वास्तव में हम वीकास कर रहे है? इस पर गहराई से वीचार करना होगा नही तो ऐसा कहना मीथ्या ना होगा की हम केवल और केवल पशचीमी सभ्यता को अपनाकर वीकास का दीखावा और ढोंग कर रहे है।
आजादी के 60 सालों के बाद भी हम अपने समाज को बदलने में असमर्थ है। आज हर नागरीक बिजली, पानी की बात करता है लेकीन वही नागरीक जब कोई सड़क की लाइट दीन में जलता देखता है तो उसे बंद करना जरुरी नही समझता , वही नागरीक जब सार्वजनीक स्थल पर कोई नल खुला देखता है तो उसे बंद करना जरुरी नही समझता।
आज अगर कोई गलती से भी खुले मन से समाज की सेवा करने चलता है तो लोग उसे पागल कहते है। अगर ये सच है तो हमारे सारे करान्तीकारी पागल थे? जो हस्ते - हस्ते फाँसी के फंदे को चूम कर, अंग्रेजो के डंडे खा कर, जेल में रातें गुजार कर हमें आजादी दीलाई, क्या वो सब पागल थे - अगर हाँ तो आज हमारे देश को ऐसे ही पागलों की जरुरत हैं।
हमें ऐसे खादीधारीयों की जरुरत नही है जो वोट की राजनीती करते हैं, जो वोट के लीये कंप्यूटर शिक्षा को बेकार बताते है। हमें ऐसे नेताओ की जरुरत नही है जो अंग्रेजी शिक्षा को बेकार बताते है। आज कोई अपने गावँ तक रेलवे लाइन बीछाता है, तो कोई आपने गावँ में इन्जीन्यरींग कोलेज खोलवाता है, कोई तो वोट के लीये Rs. 2/- per kg आनाज देने का वादा करता है, कोई बीजली मुफ्त में बाटता है, तो कोई बैंक का लोन माफ करता है। आज जीतना हर साल चुनाव में जीतना खर्च होता है अगर उसका 1/3 भाग भी वीकास में सच में खर्च कीया जाय तो सच में अपना देश अब तक वीकासशील से वीकसीत हो गया होता।
आज चुनाव के समय हर पार्टी प्रचार में कलाकारों की सहायता क्यो लेता है आज कोई अपने कामो पर वोट क्यों नही मांगता।समस्या ये है की हम इनकी बातों में आ जाते है और इन्हे आधिकार दे देते है।गलती तो हम करते है और फीर दोष उनको देते है। उन्हें तो ये बात अच्छे से पता है की हम मुर्ख है लेकीन अब हमें जागना होगा नही तो हम ऐसे ही मुर्ख बनाये जायेंगे। हमें ये साबीत करना होगा की हम मुर्ख नही है हम भी जाती, धर्म, से ऊपर उठ कर सोच सकते है, हमें ये साबीत करना होगा की लोकतंत्र का मतलब "जनता को, जनता के द्वारा, जनता के लीये चुनी गई सरकार ही है न की नेताओं को, जनता के द्वारा दीया गया अधीकार है "
तूफान की जद में है मजबूत ईमारत भी,
ऐसा तो नही है की केवल तीनके ही बीखरते है,
लोग हालत के आगे ख़ुद को बदलते है,
और एक हम है जो ख़ुद अपने हालत बदले है..................
Shashi kant singh
its too political but nice comment on politician.......
ReplyDeletegod bless u ......