कुछ समझने चला हुँ
कुछ जानने चला हुँ
दुनिया मुझे फिर से अपनी लगे
ये ख्वाब संजोये चला हुँ
दुनिया मुझे फिर से अपनी लगे
ये ख्वाब संजोये चला हुँ
ये दुनिया तो पहले ऐसी न थी
पैसों के पीछे भागती यहाँ हरएक बस्ती न थी
हम हर रोज आगे बढ़ते रहे,
अपने पीछे छुटते रहे,
सब पाने की चाह में
हमारे घरौंदे दिन ब दिन सिमटते रहे,
मतलबी इंसानियत हुई,
मतलबी सारे रिश्ते हुए,
ऐ दुनिया तेरी पनाह में,
इंसान भी आज जानवर हुए.
चाहत की दिवारे मोटे होने लगे,
हम हर रोज आगे बढ़ते रहे,
अपने पीछे छुटते रहे,
सब पाने की चाह में
हमारे घरौंदे दिन ब दिन सिमटते रहे,
मतलबी इंसानियत हुई,
मतलबी सारे रिश्ते हुए,
ऐ दुनिया तेरी पनाह में,
इंसान भी आज जानवर हुए.
चाहत की दिवारे मोटे होने लगे,
रिश्ते कब्रो में दफन होने लगे,
पहचान बनाने के लिए हम लड़ते रहे
पहचान बनाने के लिए हम लड़ते रहे
अपनों में पहचान खोने लगे.
आज रिश्तो की चादर को सिलने चला हू
बिखरते रिश्तों की डोर को जोड़ने चला हुँ,
तू मुझे फिर से वही प्यारी लगे,
आज रिश्तो की चादर को सिलने चला हू
बिखरते रिश्तों की डोर को जोड़ने चला हुँ,
तू मुझे फिर से वही प्यारी लगे,
ऐ मेरी दुनिया तुझे फिर से संजोने चला हू।
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