बहुत प्यासी है ये धरती
इन बूंदों को आज बरस जाने दो I
सदियों की जलती इस आग को,
आज बुझ जाने दो, आज बुझ जाने दो II
बहुत सहा है इन्होने रुसवाई का सितम,
बहुत तड़पा है जुदाई में, इनका ये जिस्म,
आज इन्हें मत रोको, मिट जाने दो,
इन बूंदों की चादर तले, इन्हें छुप जाने दो,
प्यास में सूखे इनके होठों पर,
दो बूंद बरस जाने दो, बरस जाने दो II
समय के थपेड़ों ने इन्हें जुदा किया था,
वक्त के तकाजे ने, इन्हें अलग रहने को मजबूर किया था,
ज़माने से इनकी पलके मिली नहीं इक - दूजे से,
आज इन्हें फिर से चिपक जाने दो,
मत रोकों इन्हें, मत टोकों इन्हें,
आज इक - दूजे की आँखों में समाने दो,
इन बिछड़े परिंदों को आज इक दुसरे में खो जाने दो
खो जाने दो…। II
शशि कान्त सिंह
मिलन |
सदियों की जलती इस आग को,
आज बुझ जाने दो, आज बुझ जाने दो II
बहुत सहा है इन्होने रुसवाई का सितम,
बहुत तड़पा है जुदाई में, इनका ये जिस्म,
आज इन्हें मत रोको, मिट जाने दो,
इन बूंदों की चादर तले, इन्हें छुप जाने दो,
प्यास में सूखे इनके होठों पर,
दो बूंद बरस जाने दो, बरस जाने दो II
समय के थपेड़ों ने इन्हें जुदा किया था,
वक्त के तकाजे ने, इन्हें अलग रहने को मजबूर किया था,
ज़माने से इनकी पलके मिली नहीं इक - दूजे से,
आज इन्हें फिर से चिपक जाने दो,
मत रोकों इन्हें, मत टोकों इन्हें,
आज इक - दूजे की आँखों में समाने दो,
इन बिछड़े परिंदों को आज इक दुसरे में खो जाने दो
खो जाने दो…। II
शशि कान्त सिंह
badhita kavita
ReplyDeletekya baat hain dil se dil tak shbdon pahucha diya
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