हल्की हल्की, रिमझिम बारिश वाली सुबह
बूंद धरा के मिलन का संगीत 
कानों में पायल बजा रही 
सोंधी सी खुशबु सांसों से मिल मदहोश कर रही 
तकिये को बाँहों से दबाये, ये ख्वाबों की दुनिया मुझे खीच
रही  
बेपरवाह; बेफिक्र चादर की सिलवटे 
घड़ी की टिक टिक में दिन रविवार 
पहर दर पहर बीत रही 
बचपन में 
कभी ख़ुशी ख़ुशी भीगते थे 
इन बूंदों में नाचते थे 
कागज की कश्ती के साथ 
अपने बेफिजूल अरमानों को लहराते थे
शाम हुई और ये झमाझम 
ख़ुशी अब चिंता की लकीरों में बदलने लगी 
रात में ये झमाझम की मधुरता
कानों को चुभने लगी 
फ़िक्र ये नहीं कि क्या हो रहा है 
चिंता कल के ऑफिस पहुचने की सताने लगी 
मेरी अगली सुबह 
झमाझम की मधुर संगीत 
‘उफ्फ्फ्फ़ ये बारिश भी ना’ में बदलने लगी 
न जाने कब 
ये बारिश से बचपन की दोस्ती 
बड़प्पन संग खोने लगी